इंक़लाब इक वतन था
आज़ादी का तरंग था
उम्मीदों के गुलशन खिलते थे
शहीदों ने लहू से सींचे थे
जोशीली धड़कन न समाती थी
दिलों में नई दीवानगी थी
आओ एक नया भारत बनायें
अपनापन का हाथ बढ़ायें
सत्य मार्ग से हम ना घबरायें
अहिंसा और नेकी का कदम बढ़ाये
जहाँ भूख दर्द का कोई स्थान नहीं
जाति धर्म-भेद का कोई मान नहीं
स्त्री पुरुष अब हाथ मिलाये
साथ ही सपनों को साचार बनाये
आज़ादी का तरंग था
उम्मीदों के गुलशन खिलते थे
शहीदों ने लहू से सींचे थे
जोशीली धड़कन न समाती थी
दिलों में नई दीवानगी थी
आओ एक नया भारत बनायें
अपनापन का हाथ बढ़ायें
सत्य मार्ग से हम ना घबरायें
अहिंसा और नेकी का कदम बढ़ाये
जहाँ भूख दर्द का कोई स्थान नहीं
जाति धर्म-भेद का कोई मान नहीं
स्त्री पुरुष अब हाथ मिलाये
साथ ही सपनों को साचार बनाये
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