Wednesday, 11 December 2013

Azadi Ki Chaah

इंक़लाब  इक वतन था
आज़ादी का तरंग था

उम्मीदों के गुलशन खिलते थे
शहीदों ने लहू से सींचे थे

जोशीली धड़कन न समाती थी
दिलों में नई दीवानगी थी

आओ एक नया भारत बनायें
अपनापन का हाथ बढ़ायें 

सत्य मार्ग से हम ना घबरायें
अहिंसा और नेकी का कदम बढ़ाये

जहाँ भूख दर्द का कोई स्थान नहीं
जाति धर्म-भेद का कोई मान नहीं

स्त्री पुरुष अब हाथ मिलाये
साथ ही सपनों को साचार बनाये 

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